प्रारम्भिक गणित की चार संक्रियाओं सङ्कलन (Additions), व्यवकलन (subtraction), गुणन (multiplication), और विभाजन (division) को हम बचपन से करते आ रहे हैं। दाशमिक अंक पद्धति के परिपेक्ष्य में ‛अंकानाम् वामतो गतिः।’ के अनुसार जोड़, घटाव और गुणा की संक्रियाओं को तो हम सदैव दाये से बाएं (Right to Left) की ओर ही करते हैं। जो कि उचित भी हैं। अब मुख्य प्रश्न यह उठता हैं कि विभाजन (भाग) की क्रिया को ‛अंकानाम् वामतो गतिः।’ नियम के विरुद्ध वाये से दायें (Left to Right) की तरफ क्यों किया जाता है?! सही कहा जाये तो प्रारम्भिक गणित में भाग देने (division) की क्रिया थोड़ी अटपटी लगती हैं। चुकी हम अपने बचपन के दिनों से इसको ऐसे ही करते आ रहे हैं; इसलिये हममे से अधिकांश लोगों का ध्यान इसपर नही जाता। आप सब अपने बचपन को याद करो और बताओ कि आप मे से कितनों ने यह प्रश्न अपने अभिभावकों या अध्यापकों से पूछा हैं?! शायद कोई नहीं! यह विडंबना ही है कि हमारी बचपन की जिज्ञासा अनुकूल वातावरण के अभाव में मृतप्राय हो जाती हैं।
हम भारतीयों के लिए यह अत्यंत गर्व की बात है कि हमने संसार को गिनती सिखाया। हमने संसार को दाशमिक/दशमलव संख्या पद्धति जैसी अत्यंत उन्नत गणना प्रणाली दिया। एक बार महानतम भौतिक वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि, “हम भारतीयों के ऋणी हैं। यदि भारतीयों ने गिनती नही सिखाई होती तो हमरा विज्ञान आज भी बच्चा होता।” … दाशमिक संख्या प्रणाली के द्वारा कितनी भी बड़ी और छोटी संख्याओं को सुगमता से लिख और समझ पाने के साथ ही संकलनादि संक्रियाओं को बहुत ही लाघव और सहजता से कर पाना सुलभ हो सका। यह सर्वविदित है कि भारतवर्ष में उत्पन्न दाशमिक संख्या पद्धति अरब के व्यापारियों के द्वारा मध्य एशिया से होते हुए यूरोप तक प्रकाशित होकर आज सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रयोग होती हुई आधुनिक ज्ञान विज्ञान का आधार स्तम्भ बना हुआ है।
दाशमिक संख्या पद्धति/दशमलव पद्धति अथवा दशाधार संख्या पद्धति (Decimal System, Base ten or Denary) वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिए कुल दस अंकों या दस संकेतों (0,1,2,3,4,5,6,7,8,और 9) का प्रयोग किया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्या पद्धति है। स्यात् यह स्थानीय मान (place value) पर आधारित संसार की सर्वप्रथम संख्या प्रणाली है। ‘अंकानाम् वामतो गतिः।’ नियमानुसार इसमें प्रत्येक अंक स्थान अपने बायें वाले अंक स्थान से दस गुना होता है। यही कारण है की जोड़ घटाव आदि गणितीय संक्रियाएँ दायें से बायें (Right to Left) की तरफ की जाती हैं। वस्तुतः अंकों का योग 9 से अधिक होने पर प्राप्त होने वाली दो अंकों की संख्या में से बायें वाली संख्या को एक स्थान वाम में प्रतिस्थापित कर के पुनर्योग किया जाता है। वाम स्थान में प्रतिस्थापित होने वाली इस संख्या को ही तो हासिल (Carry Digit) कहते हैं। स्पष्ट है कि घटाव की क्रिया में (कम संख्यामान अंक में से बड़े अंक को घटाने के दौरान) बायें वाले अंक से 10 उधार लिया जाता है, क्योकि प्रत्येक अंक अपने से दायें वाले अंक से दस गुना होता है। इस तरह हम देखते हैं की दाशमिक पद्धति के मूलभूत नियम “अंकानां वामतो गतिः।” के अनुसार योग और वियोग (Addition and Subtraction) की संक्रियाओं को सहजता से सम्पन्न किया जा सकता है। यह ध्यातव्य है कि कुछ विशेष स्थितियों में इन संक्रियाओं को बाये से दाये (Right to left) किया जा सकता है।
प्रारम्भिक गणित की अन्य दोनों संक्रियाएँ ‘गुणन और विभाजन’, वस्तुतः जोड़ और घटाव के ही उन्नत प्रारूप (Advance form) हैं। यह स्पष्ट है कि -
5 × 4 = 5+5+5+5 = 20 , क्रमावर्ती संकलनों का संक्षेपण ही गुणन है। अर्थात एक ही संख्या को यदि बार बार जोड़ना हो तो इसके संक्षिप्त रूप को ही गुणा कहते हैं। हम सब गुणा-भाग करने के लिए जिन सारणियों/पाहड़ा (Tables) का प्रयोग करते हैं वे सब समानांतर श्रेणी (Arithmetic progressions) ही तो होती हैं। और इसी प्रकार किसी संख्या में से किसी अन्य संख्या को बार बार घटाने की क्रिया को विभाजन कहते हैं। जैसे - 40÷7 = 5 भागफल और 5 शेषफल।
40 -7 = 33, 33 - 7 = 26, 26 - 7 = 19, 19 - 7 = 12, 12 - 7 = 5
यहाँ पर कुल घटाने की क्रिया पांच बार हुई है, अतः भागफल होगा 5 तथा अंत में शेष भी 5 बच गया।
अब, गुणा की संक्रियाओं को विस्तार से देखा जाए तो
35064
× 37
________
245448
+105192
________
1297368
चुकि यहाँ(दूसरी पंक्ति में) गुणा 30 से होता है, इसलिए गुणनफल एक अंक वाम में प्रतिस्थापित हो जाता है। यहाँ 8 के नीचे और 2 के दायें शून्य लिखा जा सकता है।
(ध्यातव्य है कि गुणन की क्रिया को भी कुछ विशेष स्थितियों में वाए से
दायें किया जा सकता है।)
365-9=356, 356-9=347, … , 23-9=14, 14-9=5 ( 40 बार घटाने पर )
इसके अलावा यदि हम 9 का गुणज 45 (9×5) को बार बार घटाया जायेगा तो इसका परिणाम मात्र 8 बार में ही प्राप्त हो जाएगा। इस प्रकार हम जानते हैं कि बड़ी संख्याओं में भाग देने के लिये भाजक के दस घात वाले गुणजो को घटना, क्रिया को बहुत आसान कर देगा। उदाहरणार्थ
78125 ÷ 12
78125
- 72000 ( गुणज भागफल, 6000 )
_______
6125
- 6000 (गुणज भागफल, 500 )
________
125
- 120 ( गुणज भागफल, 10 )
_____
5 शेषफल
भागफल का सम्पूर्ण योग = 6000+500+10 = 6510
अब भाग देने के परम्परागत एल्गोरिथ्म (प्रमेयिका) पर विचार करते हैं।
एल्गोरिथ्म(algorithm) प्रमेयिका/कलन विधि - एल्गोरिथ्म/प्रमेयिका सुपरिभाषित चरणों की एक श्रृंखला होती हैं जो किसी समस्या के हल का विधि बताती हैं।
78125 ÷ 12 =
12 ) 78125 ( 6000 + 500 + 10
- 72000 = 6510
________ भागफल
6125
- 6000
______
125
- 120
_____
5 शेषफल
( भाग देने Division की क्रिया में वस्तुतः हम सम्पूर्ण संख्या में से भाजक (Divisor) के गुणज (multiple) के 10 (दशम) घात वाले गुणजों को घटा रहे होते हैं।)
यहाँ यह बात सहज ही अनुभवजन्य हैं कि, यदि भाज्य का बाएँ ओर से अंकों को लेकर यदि भाग दिया जाएगा तो भागफल में दशम घात लिखने का आवश्यकता ही नहीं पड़ेगा। बस भाज्य में से बाएं ओर से भाजक के स्थानीय मान के समकक्ष अंक लेकर घटाते रहो; और भागफल मे भी बाएं से दाएं की तरफ गुणज लिखते जाओ। सारी क्रिया अपने आप ही सम्पन्न होती जाएगी।
कितना आनन्द प्रद हैं न! विभाजन की यह कलन विधि।
यही तो दाशमिक संख्या पद्धति का अति विशिष्ट गुण हैं। इस संख्या पद्धति का सहज, और सरल होना। तथा इसके द्वारा दुरूहता पूर्ण गणितीय गणनाओं को अत्यंत लाघव और सहजता से सम्पन्न कर पाने की सुलभता ने ही तो इसको विश्व का सिरमौर बना दिया। थोड़ा विचार करिये ना, रोमन आदि संख्या पद्धतियों में तो बड़ी संख्याओं के लिए जोड़ और घटाव जैसी साधारण गतिविधि ही कर पाने कठिन है। इन संख्या प्रणालियों में तो बहुत बड़ी संख्याओं को लिखना और पढ़ना ही कठिन है। गुणा और भाग के बारे में सोचना ही व्यर्थ है। फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार, “भारत ने संख्याओं प्रदर्शन के लिए दस अंकों वाली एक अति निपुण प्रणाली दी है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यदि इस प्रणाली के अन्य गुणों की उपेक्षा भी कर दी जाए, तो भी इसके सरतम होने को कदापि अस्वीकार नहीं किया जा सकता।”