रविवार, 10 अक्तूबर 2021

जिज्ञासा

   

              ॐ  किम्  धीः  स्वः 

  तत्सवितुर्सर्वज्ञानं  सर्वज्ञानस्य जननीः। 

            जिज्ञासाः धीः प्रचोदयात् ।। 


   

   जिज्ञासा 

               “ज्ञातुमिच्छा जिज्ञासा।” (ब्रह्मसूत्र १.१.१) 

      सत्यान्वेषण का सङ्कल्प। प्रश्न-प्रतिप्रश्न के माध्यम से सत्य तक पहुँचने का सङ्कल्प। संकल्प, जो परम श्रेष्ठ तथा व्यक्ति और समाज(व्यष्टि एवम् समष्टि) सबके लिए परम हितकारी है। जिज्ञासा वह सहज प्रवृत्ति है, जो मनुष्य सहित प्रत्येक जीवित प्राणी में जन्मजात विद्यमान होती हैं। चेतनता की अधिष्ठात्री, जिसके अभाव में प्राणी प्राण रहते हुए भी जड़वत होता हैं। 

       शास्त्र की परिपाटी को मानते हुए, संस्कृत (जिज्ञासा गायत्री) से ग्रन्थ(ब्लॉग) को शुरू करने पर पाठकों को रोष नहीं होना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जिज्ञासा ऐसी चीज के लिए होनी बताई गई हैं जो सर्वहितकारी हो अर्थात व्यक्ति और समाज सबके लिए परम हितकारी हो। महर्षि व्यास ने अपने शास्त्र में ब्रह्म को सर्वश्रेष्ठ माना जबकि व्यास-शिष्य जैमिनी ने धर्म को श्रेष्ठ कहा। शास्त्रों को आत्म-भोजी (शास्त्रों को अपने पुराने अवधारणाओं का भक्षण करते हुए, स्वयं को नित्य नवीन सत्य के प्रकाश में सदैव परिमार्जित करते हुए अद्यतन) होना चाहिए; अतः पुराने ऋषियों से मतभेद रखना हमारे लिए पाप की वस्तु नहीं हैं। मेरा विचार यह हैं कि, संसार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चीज स्वयं अपने आप मे जिज्ञासा ही हैं। क्योंकि यही समस्त चराचर जगत, ब्रह्म और धर्मादि ज्ञान का कारण हैं। समस्त शास्त्रों के सृजन का प्रेरक होने पर भी पुरातन ऋषियों ने स्यात् सत्यान्वेषण के इस सहज प्रवृत्ति को कम महत्व दिया। राहुल सांकृत्यायन जी ने घुमक्कड़ी को सर्वश्रेष्ठ माना। पुनश्च यह ध्यातव्य हैं कि, जिज्ञासा ही घुमक्कड़ी का बीज हैं। इसके अभाव में कोई घुमक्कड़ हो ही नहीं सकता। यदि घुनाच्छर न्याय बस कोई घुमक्कड़ हो भी गया तो वह किसी का हितकारी तो कदापि नहीं हो सकता हैं। कोई भी व्यक्ति जन्म से ना तो धार्मिक ही होता हैं और ना ही घुमक्कड़। परन्तु हर एक बालक जन्मजात जिज्ञासु होता हैं। उत्सुकता, अपने वातावरण को जानने की उत्सुकता हर एक प्राणी (मनुष्यों सहित लगभग प्रत्येक जीव जंतुओं का) का जन्मजात गुण हैं। 

       सत्यान्वेषण के मार्ग पर बढ़ने के लिए उत्सुक होना अत्यंत आवश्यक हैं। यह उत्सुकता ही हमे मार्ग से विमुख नहीं होने देती। जिज्ञासा हमें मिथक, मिथ्या तथा मिथ्याग्रह से परे जाने का सामर्थ्य प्रदान करती हैं। जिज्ञासुओं को टूटते मिथकों एवं खण्डित होते पूर्व धारणाओं से आहत नहीं होना चाहिए। उन्हें तो नवनिर्माण हेतु, नित नवीन सत्य एवं तथ्यों का स्वागताकांक्षी होना चाहिए। सदैव नव्यान्वेषणों मे निरत, परिवर्तन के लिए सदा तत्पर एवं मान-अपमान जैसी स्थितियों में सदा सम रहने वाले ही जिज्ञासु कहे जाने योग्य हैं। … जिज्ञासा, उत्सुकता यहीं से प्रारम्भ होती है ज्ञान प्राप्ति की मौलिक जीवन यात्रा; एक ऐसी सनातन यात्रा जो कि देश, काल व परिस्थितियों से बद्ध नहीं होती। और ना ही उदासीनता से लिप्त होती हैं। अब प्रश्न यह उठता है की जिज्ञासा को व्यवहार में कैसे उतारा जाय? किस प्रकार उचित परिप्रश्नों से यथार्थ को आविर्भूत किया जाय? … प्रश्न करो! बहुत सारा प्रश्न करो! नाना प्रकार के प्रश्नों से मस्तिष्क को प्लावित कर दो। एकमात्र यही विधि हैं। किम् धीः स्वः?  


    हे! जिज्ञासुओं! अपने अंदर के बालक को जगाओ। हमारे मन मे, अभिज्ञता के मूल में सदैव स्पंदित होने वाली जिज्ञासा के भाव जागृत हों। … ज्ञान-प्राप्ति के अपूर्ण लक्ष्य के प्राप्ति हेतु संकल्प के साथ-साथ एक उचित एवं कुशल रणनीति का होना भी अत्यंत आवश्यक हैं। मन मे भाव जाग्रत करें, जिज्ञासा का शमन उचित माध्यम यथा मूल पाठ अथवा ऐसे व्यक्ति के सानिध्य में करें जिसने विवेक के माध्यम से सत्यान्वेषण किया है। स्वयं भी प्रकृति के रहस्यों(परिघटनाओं) का प्रेक्षणों-सर्वेक्षणों के माध्यम से अवलोकन करें। अस्तु!!

      हे भावी जिज्ञासुओं! जिज्ञासु होने से भी अधिक महत्वपूर्ण यह हैं कि हम तर्क एवं कुतर्क के भेद को समझें; अन्यथा ज्ञान प्राप्ति की यह यात्रा सायास ही अनुशासनहीनता को जन्म देगी। पुनश्च यह कुतर्क जिज्ञासु को पतनोन्मुख कर देता हैं। 

     अतः आइये हम सब अपने हृदय में उत्सुकता की यज्ञाग्नि को प्रज्वलित कर, किम् आदि समिधा से ककारषष्ठी (क्या,क्यों,कब,कहाँ,कैसे,किस) आदि बीज मन्त्रों को जपते हुए इस परम् पवित्र जिज्ञासा गायत्री का अनुष्ठान करें। 





1 टिप्पणी:

आपकी शालीन और रचनात्मक प्रतिक्रिया मेरे लिए पथप्रदर्शक का काम करेगी। अग्रिम धन्यवाद!